महाशिवरात्रि 2023 पर 30 साल बाद बन रहा है बेहद शुभ संयोग, जानें पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त!

 महाशिवरात्रि 2023 पर 30 साल बाद बन रहा है बेहद शुभ संयोग, जानें पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त!

महाशिवरात्रि की प्रारंभिक जानकारी

वैसे तो शिवरात्रि हर महीने मनाई जाती है लेकिन महाशिवरात्रि पर्व वर्ष में एक बार मनाया जाता है। यह हिंदू धर्म के लिए सबसे महत्वपूर्ण भारतीय त्योहारों में से एक है। महाशिवरात्रि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। इस साल महाशिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी को है। इस दिन भगवान शिव की विधि विधान से पूजा की जाती है और व्रत भी रखा जाता है। इस दिन भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह हुआ था। हिंदू धर्म में मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोलेनाथ पृथ्वी पर मौजूद सभी शिवलिंग में विराजमान होते हैं इसलिए महाशिवरात्रि के दिन की गई शिव की आराधना का कई गुना अधिक फल प्राप्त होता है। 


इस बार की महाशिवरात्रि और भी खास होगी क्योंकि इस दिन शनि प्रदोष के साथ कई दुर्लभ योग भी बन रहे हैं। शनि प्रदोष का महाशिवरात्रि के साथ होना दुर्लभ संयोग माना जाता है जो कि शनि दोष को दूर करने में बेहद कारगर है। पूरे देश में इस पर्व को बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। वैसे तो शिवजी की पूजा करने के लिए हर दिन शुभ है लेकिन महाशिवरात्रि का अपना एक अलग ही महत्व है। मान्यता है इस दिन भगवान शिव भक्तों की मनोकामनाएं जल्दी पूरी करते हैं।


महाशिवरात्रि पर शनि प्रदोष का योग 

महाशिवरात्रि के साथ शनि प्रदोष का होना धार्मिक दृष्टि से बहुत ही शुभ योग माना गया है शनि प्रदोष व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए रखा जाता है 18 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन शनि प्रदोष होने से भगवान शिव जल्द ही भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं इसके साथ यह व्रत शनि दोष दूर करने के लिए बहुत ही उत्तम माना गया है महाशिवरात्रि पर जल में काले तिल डालकर शिवजी का अभिषेक करने से आपको शनि की महादशा से राहत मिलेगी ऐसी प्रमुख मान्यताएं हैं। 


ऑनलाइन एस्ट्रोलॉजर्स और ज्योतिष के अनुसार महाशिवरात्रि पर 30 साल बाद दुर्लभ संयोग बनने जा रहा है। इस बार महाशिवरात्रि पर शनि भी अपनी मूल त्रिकोण राशि कुंभ राशि में रहेंगे और 13 फरवरी को कुंभ में सूर्य का प्रवेश भी होगा इस तरह महाशिवरात्रि पर पिता पुत्र अर्थात सूर्य और शनि एक ही राशि में होंगे। ज्योतिष में पिता और पुत्र सुरेश शनि के बीच में विरोधी संबंध माने जाते हैं इसके बावजूद यह इस राशि में शुभ फलदाई होंगे इस वक्त में शनि अस्त अवस्था में होंगे। जिससे सूर्य का प्रभाव अधिक रहेगा कैरियर और आर्थिक मामलों की दृष्टि से यह स्थिति बहुत ही बेहतर मानी जाती है।  

इस शुभ योग में शिवजी की पूजा और व्रत करने से शनि के सभी दोष दूर हो सकते हैं।


महाशिवरात्रि शुभ मुहूर्त समय 

हिंदू पंचांग के अनुसार इस वर्ष महाशिवरात्रि का पर्व 18 फरवरी 2023 दिन शनिवार को है। फागुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का आरंभ 18 फरवरी को शाम 6:32 से होगा और स्थिति का समापन 19 जनवरी दोपहर 2:48 पर होगा । 


महाशिवरात्रि की पूजा रात्रि के समय की जाती है इसलिए शिवरात्रि का पर्व 18 जनवरी के दिन रखा जाएगा। प्रथम प्रहर की पूजा शाम 6:21 से प्रारंभ होगी और इसका समापन अगली सुबह 7:00 बजे होगा निशिता पूजा का समय मध्य रात्रि 12:02 से 12:47 तक रहेगा।


तिथि और शुभ मुहूर्त जानने के साथ साथ आप अपना मंथली राशिफल भी चैक कर सकते है। 


महाशिवरात्रि की पूजन विधि

महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराएं साथ ही ऊं नमः शिवाय मंत्र से पूजा करनी चाहिए इसके बाद रात्रि के चारों प्रहर में शिवजी की पूजा करनी चाहिए और अगले दिन प्रात काल ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए।


महाशिवरात्रि की कथा 

महाशिवरात्रि को लेकर एक कथा है इस दिन शिवलिंग 64 अलग-अलग जगह पर प्रकट हुए थे इन सभी में से हम केवल 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम ही जानते हैं। जिनके नाम हैं सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग, रामेश्वर ज्योतिर्लिंग, और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग। वैसे तो द्वादश 1 ज्योतिर्लिंग को लेकर अलग-अलग कथाएं भी है किंतु जैसे शिव अनंत हैं वैसे ही उनकी कथाएं भी अनंत है।


सागर मंथन कथा   

मान्यता है सागर मंथन के समय कालकेतु विष निकला था। पूरे ब्रह्मांड को बचाने के लिए भगवान शिव ने विष पी लिया इससे उनके गले का रंग नीला पड़ गया, इस कारण भोलेनाथ का नाम नीलकंठ पड़ गया। शास्त्रों के अनुसार इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है कुछ लोग इस दिन को भगवान शिव और पार्वती के विवाह के रूप में भी जानते हैं लेकिन ज्यादातर लोग मानते हैं— जिस दिन भगवान शिव का शिवलिंग के रूप में पृथ्वी पर अवतरण हुआ था उसे महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के बाद नववर्ष की शुरुआत होती है, ऋतुओ में परिवर्तन होता है,कामदेव का प्रभाव हर दिशा में फैला हुआ है इसलिए फागुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को पूजा करना महाव्रत माना गया है। धीरे-धीरे इस दिन का नाम महाशिवरात्रि पड़ गया।


महाशिवरात्रि व्रत कथा   

पूर्व काल में चित्र भानु नाम का एक शिकारी था। जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार का पेट पालता था। वह एक साहूकार का कर्जदार था। लेकिन उसका ऋण समय पर ना चुका सका जिससे क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिव मठ में बंदी बना लिया संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यान मग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के लिए दबाव डालने लगा शिकारी अगले दिन सारा कर्ज लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। 


अपनी दैनिक दिनचर्या की शिकारी जंगल में शिकार के लिए निकला लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख प्यास से व्याकुल था। शिकारी खोजता हुआ बहुत दूर तक निकल गया जब अंधेरा हो गया तो उसने विचार किया रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी वह वन तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़कर रात बीतने का इंतजार करने लगा । बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल पत्रों से ढका हुआ था शिकारी को उसका पता ना चला पड़ाव बनाते समय उसने जो कहानियां टहनियां तोडी वह संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई इस प्रकार दिन भर भूखे प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए ।


रात्रि का एक पहर बीत जाने पर एक गर्भवती हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर जैसे ही प्रत्यंचा खींची हिरनी बोली मैं गर्भवती हूं शीघ्र ही प्रसव करूंगी तुम एक साथ दो जीवो की हत्या करोगे जो ठीक नहीं है मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी तब मार लेना शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्वपत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर इस प्रकार उसे अनजाने में प्रथम पहर का पूजन भी संपन्न हो गया।


 कुछ देर बाद एक हिरनी उधर से निकली शिकारी की खुशी का ठिकाना ना रहा। हिरनी के नजदीक आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया जब उसे देख हिरनी ने विनम्रता पूर्वक निवेदन किया है शिकारी थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत हुई हो अपने प्रिय खोज में भटक रही हूं मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र तुम्हारे पास आ जाऊंगी। शिकारी ने उसे भी जाने दिया।


दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका वह चिंता में पड़ गया रात का आखिरी पहर बीत रहा था इस बार भी धनुष से लगकर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे जिससे दूसरे प्रहर की पूजा भी पूरी हो गई। तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था उसने धनुष पर तीर चढाने में देर नहीं लगाई वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरनी बोली हे शिकारी मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले कर के लौट आऊंगी इस समय मुझे मत मारो शिकारी हंसा और बोला सामने आए शिकार को कैसे छोड़ दूं मैं ऐसा मूर्ख नहीं। 


इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार हो चुका हूं मेरे बच्चे भूख प्यास से व्याकुल हो रहे होंगे। उत्तर में हिरनी ने कहा जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है ठीक वैसे ही मुझे भी। हे शिकारी मेरा विश्वास करो मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत वापस लौट आऊंगी। हिरनी का तीन स्वर्णकार शिकारी को उस पर दया आ गई उसने उसने को भी जाने दिया शिकार के अभाव में और भूख प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोडकर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट पुष्ट मृग उस रास्ते पर आया शिकारी ने सोच लिया इसका शिकार वह अवश्य करेगा।


शिकारी की तनी प्रत्यंचा देख मृग विनती भरे स्वर में बोला हे शिकारी यदि तुमने मुझसे पहले आने वाली 3 वीडियो कथा छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में देरी ना करो ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुख ना सहना पड़े मैं उन हिरणियो का पति हूं यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ समय का जीवन देने की कृपा करो मैं उनसे मिलकर तुम्हारे पास उपस्थित हो जाऊंगा।


थोड़ी ही देर बाद वह मृग सह परिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया ताकि वह उनका शिकार कर सके किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेम भावना देकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया। अनजाने में शिवरात्रि व्रत का पालन कर शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने के लिए आए तो शिव गणों ने वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक गए। शिव जी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जानकर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।


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