क्यों मनाया जाता है मकर संक्रांति का त्यौहार? जाने शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और इतिहास

 क्यों मनाया जाता है मकर संक्रांति का त्यौहार? जाने शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और इतिहास

हमारी भारतीय संस्कृति में त्यौहारों, मेलो, पर्वों का महत्वपूर्ण स्थान है जहां हर दिन कोई ना कोई त्यौहार मनाया जाता है। जिसमें एक महत्वपूर्ण त्यौहार मकर सक्रांति है। सनातन धर्म में मकर संक्रांति का त्यौहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य ग्रह मकर राशि में प्रवेश करते हैं तभी यह त्यौहार मनाया जाता है। विशेषकर इस दिन जप, तप, दान, स्नान ,तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व माना जाता है। प्रत्येक वर्ष इस त्यौहार को 14 जनवरी को मनाने की परंपरा रही है। इस दिन सूर्य ग्रह का धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रांति कहलाता है। इसीलिए राशियों की मंथली होरोस्कोप बाए डेट ऑफ़ बर्थ  पर  इसका प्रभाव देखा जा सकता है। 

मकर संक्रांति का त्यौहार देशभर में अलग-अलग नामों के साथ मनाया जाता है। जैसे–  खिचड़ी, टहरी, पोंगल जैसे नामों से भी ये त्यौहार काफी प्रचलित हैं। इस दिन सूर्य उत्तरायण अवस्था में प्रवेश करते हैं। 


मकर सक्रांति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण पर्व भी कहते हैं। हमारे शास्त्रों में इसे देवताओं का दिन और दक्षिणायन को रात्रि माना जाता है। मकर राशि में सूर्य के उत्तरायण होने से ग्रीष्म ऋतु का आरंभ माना जाता है। मकर सक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणायन में होते हैं इसी कारण भारत में राते बड़ी और दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है किंतु मकर सक्रांति के दिन से सूर्य उत्तरायण की और आना प्रारंभ करते हैं जिसके कारण दिन बड़े और राते छोटी होना शुरू हो जाती हैं। 


मान्यता है इस दिन किया गया दान दुगुना होकर वापस लौटता है। मकर सक्रांति के अवसर पर गंगा स्नान और गंगा तट पर किया गया दान अत्यंत शुभ माना जाता है। इस तिथि पर गंगा तट पर किए गए स्नान को महा स्नान की संज्ञा दी गई है। सामान्यतः सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं परंतु कर्क और मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से फलदायक माना गया है।

जाने क्या है मकर सक्रांति का इतिहास

देवी पुराण के अनुसार शनि देव के अपने पिता सूर्य देव से संबंध अच्छे नहीं थे क्योंकि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेदभाव करते हुए देख लिया था इस बात से नाराज होकर सूर्यदेव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से दूर कर दिया था। इससे क्रोधित होकर शनि देव और उनकी माता छाया नहीं सूर्य देव को कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया था।


अपने पिता सूर्य देव को कष्ट में देखकर यमराज काफी दुखी हुए। यमराज ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग से मुक्त कराने के लिए कठोर तपस्या की। लेकिन सूर्य देव ने क्रोधित होकर शनिदेव के घर कुंभ जिसे शनि की राशि कहा जाता है जला दिया था। इससे शनिदेव और उनकी माता छाया को कष्ट भोगना पड़ा था। अपने पिता सूर्य देव और अपने सौतेले भाई शनि के बीच संघर्ष देखकर यमराज ने अपनी सौतेली माता छाया और अपने भाई के कल्याण के लिए पिता सूर्य को काफी समझाया। तब जाकर सूर्यदेव ने कुंभ अर्थात शनि की राशि में प्रवेश किया।


कुंभ राशि में जब सब कुछ जला हुआ था उस समय शनिदेव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था इसलिए उन्होंने काले तिल से सूर्य देव की आराधना की। शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि मेरे आने पर धन धान्य से भर जाएगा। तिल से पूजन करने के कारण ही शनि को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था इसलिए शनिदेव को तिल प्रिय हैं। इसी समय से मकर सक्रांति पर तिल से सूर्य और शनि की पूजा का नियम शुरू हुआ था।


शनिदेव की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि महाराज को आशीर्वाद दिया जो भी व्यक्ति मकर सक्रांति के दिन काले तिल से सूर्य की पूजा करेगा उसके सभी प्रकार के संकट दूर होंगे इस दिन तिल से सूर्य की पूजा करने पर आरोग्य सुख में वृद्धि होगी साथ ही शनि के अशुभ प्रभाव कम होंगे और आर्थिक उन्नति के योग बनेंगे। तिल का भोग लगाने के बाद उसे प्रसाद के रूप में भी ग्रहण करना चाहिए।

 

जानें मकर संक्रांति का महाभारत से क्या है रिश्ता

महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर सक्रांति का चयन किया था। मकर सक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जा मिली थी।

माता यशोदा ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था तब सूर्य देव उत्तरायण काल में प्रवेश कर रहे थे और उसी दिन मकर सक्रांति थी तभी से मकर सक्रांति व्रत का प्रचलन शुरू हुआ।

 

मकर संक्रांति पर्व को मानाने की सही तिथि​​ और शुभ मुहूर्त

वैसे तो मकर सक्रांति का पर्व हर साल 14 जनवरी के दिन ही मनाया जाता है लेकिन 2023 में मकर सक्रांति की तिथि को लेकर लोगों के बीच असमंजस की स्थिति है कुछ ज्योतिषियों के अनुसार 2023 में मकर सक्रांति 14 जनवरी को होगी तो वहीं कुछ का कहना है कि मकर सक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी आइए जानते हैं साल 2023 में क्या है मकर सक्रांति की सही तिथि और शुभ मुहूर्त टाइम 


मकर सक्रांति के दिन सूर्य देव मकर राशि में गोचर 14 जनवरी की रात्रि 8:25 पर करेंगे और शास्त्रों में मकर सक्रांति उदया तिथि के अनुसार पर्व की तिथि निर्धारित की जाती है इसलिए उदया तिथि के अनुसार सक्रांति पर 15 जनवरी 2023 रविवार के दिन मनाना शुभ फलदाई माना जाएगा। 15 जनवरी यानी मकर सक्रांति पर सर्वार्थ सिद्धि योग अमृत सिद्धि योग वह राजपथ योग का अत्यंत शुभ संयोग बन रहा है मकर सक्रांति पर पुण्य काल सुबह 5:45 से शाम 6:56 तक रहेगा वही महा पुण्य काल सुबह 5:43 से 7:55 तक रहेगा जिसकी अवधि 2 घंटे 12 मिनट की होगी।

 

मकर सक्रांति पूजन विधि

मकर सक्रांति को शुभ मुहूर्त में पवित्र नदियों में स्नान कर लोटे में लाल फूल और अक्षत डालकर भगवान भास्कर को अर्घ्य दे। इस दिन शनि देव को भी जल अर्पित करना चाहिए।

भगवान भास्कर के मंत्र ऊं सूर्याय नमः का जाप करें और गीता का पाठ करें।

अन्न,घी, गर्म वस्त्र और तिल का दान यथासंभव करें।


नए अन्नकी खिचड़ी बनाएं और भगवान को अर्पित कर प्रसाद रूप में ग्रहण करें।

संध्या काल में अन्न का सेवन ना करें।

 

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