क्यों मनाई जाती है सकट चौथ? क्या है पूजा विधि का शुभ मुहूर्त और व्रत महत्व

 क्यों मनाई जाती है सकट चौथ? क्या है पूजा विधि का शुभ मुहूर्त और व्रत महत्व

सकट चतुर्थी की प्रारंभिक जानकारी: प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष में पढ़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। सकट चतुर्थी का पर्व पंचांग के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। माघ मास में पढ़ने वाली संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व होता है, इस बार संकष्टी चतुर्थी मंगलवार को पड़ने से यह और भी खास मानी जा रही है। मंगलवार को होने की वजह से इसे अंगारकी संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इसे संकष्टी चतुर्थी, तिलकुट चतुर्थी ,और माघी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।  

सकट चौथ पर मिट्टी से बने माता गौरी, गणपति गणेश, और चंद्र देव की आराधना की जाती है। सकट का अर्थ है संकट, इस दिन गणपति गणेश ने देवताओं के संकट दूर किए थे। सकट चौथ का व्रत गणपति गणेश को समर्पित है। इस तिथि पर माताएं अपनी संतान के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और उनके लंबी आयु और उत्तम स्वास्थ्य की कामना करती हैं। माता गौरी और गणेश जी की आराधना करने के पश्चात चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है। 


संकष्टी चतुर्थी का शुभ मुहूर्त टाइम   

पंचांग के अनुसार संकष्टी चतुर्थी का व्रत 10 जनवरी 2023 को रखा जाएगा। संकष्टी चतुर्थी का प्रारंभ 10 जनवरी को दोपहर में 12:09 पर होगा और इसका समापन 11 जनवरी को दोपहर में 2:31 पर होगा। 

यह व्रत रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद खोला जाता है इसलिए इस व्रत की तिथि 10 जनवरी को मानना ही सर्व सम्मत होगा। 10 जनवरी को चंद्र उदय का समय रात को 8:41 पर तय है। किस तिथि पर भद्रा भी लग रही है परंतु भद्रा का समापन दोपहर 12:00 से पहले समाप्त हो जाएगा। 


क्या है सकट चौथ कथा? जाने महत्व 

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान गणेश आज के दिन अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से निकल कर आए थे। इसलिए इसे सकट चौथ कहा जाता है। कथा के अनुसार एक बार मां पार्वती स्नान के लिए गई हुई थी तो उन्होंने द्बार पर गणेश जी को पहरा देने के लिए खड़ा कर दिया। माता पार्वती ने किसी को भी अंदर नहीं आने के लिए कहा तभी भगवान शिव माता पार्वती से मिलने के लिए आ गए। भगवान शिव जब अंदर जाने लगे तो गणेश जी ने उनको जाने से मना कर दिया।  

इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती ने बाहर निकल कर अपने पुत्र का यह हाल देखा तो बहुत जोर से विलाप करने लगी और आपके पुत्र को जीवित करने की हठ करने लगी। तब माता पार्वती ने शिव जी से अनुरोध किया तत्पश्चात गणेशजी को हाथी का सिर लगाकर दूसरा जीवन दिया गया तबसे गणेश गजानन के नाम से जाने लगे। तभी से यह तिथि गणपति पूजन की तिथि बन गई। इस दिन गणेश जी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है ऐसी मान्यता है। 

सतयुग काल सकट कथा 

कहते हैं सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। एक बार तमाम कोशिशों के बावजूद जब उसके बर्तन कच्चे रह जा रहे थे तो उसने यह बात एक पुजारी को बताई उस पुजारी ने बताया किसी छोटे बच्चे की बलि से ही यह समस्या दूर हो पाएगी इसके बाद उस कुम्हार ने एक बच्चे को पकड़ कर अलाव में डाल दिया वह सकट चौथ का दिन था, काफी खोजने के बाद भी जब उसकी मां को उसका बेटा नहीं मिला तो उसने गणेश जी के समक्ष सच्चे मन से प्रार्थना की, उधर जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आग में उसके बर्तन तो पक गए लेकिन बच्चा भी सुरक्षित था। इस घटना के बाद कुम्हार डर गया और राजा के समक्ष पहुंचकर पूरी कहानी बताई इसके बाद राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने संकटों को दूर करने वाले सकट चौथ की महिमा का वर्णन किया। तभी से महिलाएं अपनी संतान और परिवार के सौभाग्य और दीर्घायु के लिए व्रत करने लगी। 

सकट कथा वर्णन

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओ में घिरे हुए थे सब मदद मांगने भगवान शिव के पास गए उस समय शिव जी के साथ कार्तिकेय जी तथा गणेश जी भी बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर शिवजी ने कार्तिकेय और गणेश से पूछा तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है तब कार्तिकेय और गणेश दोनों ने ही इस कार्य के लिए सक्षम बताया इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा। भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए परंतु गणेश जी सोच में पड़ गए कि वह मूषक के ऊपर बैठ कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में बहुत समय लग जाएगा तभी उन्हें एक उपाय सूझा गणेश जी अपने स्थान से उठे और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए।  

परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे तब शिवजी ने गणेश से पृथ्वी की परिक्रमा न करने का कारण पूछा तब श्री गणेश ने कहा माता पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं। यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। 

इस प्रकार भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया की चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप— देहि ताप, दैविक ताप, तथा भौतिक ताप दूर होंगे। इस व्रत को करने से व्रत धारी को जीवन के सभी तरह के कष्टों से मुक्ति प्राप्त होगी और जीवन के भौतिक सुखों की अनुभूति हो सकेगी। 

संकट चतुर्थी पूजा विधि

संकष्टी चतुर्थी पर सूर्य उदय से पहले तिल के पानी से स्नान करें और फिर उत्तर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके भगवान गणेश की पूजा करें। गणेश जी को तिल, गुड़, लड्डू और चंदन अर्पित करें साथ ही मोदक का भोग लगाएं। इसमें तिल का खास महत्व है इसलिए जल में तिल मिलाकर अघर्य देने का विधान है। पूरे दिन व्रत करने के बाद शाम को सूर्यास्त के बाद दुबारा गणेश जी की पूजा करें और उसके बाद चंद्र उदय की प्रतीक्षा करें, चंद्रोदय के बाद चांद को तिल, गुड़ आदि से अर्घ्य देने के बाद ही व्रती व्यक्ति को अपना व्रत खोलना चाहिए उसके बाद गणेश जी की पूजा के बाद तिल का प्रसाद खाना चाहिए। अधिक जानने के लिए आप हमारे ऑनलाइन एस्ट्रोलॉजर चैट विपल्प का इस्तेमाल कर सकते है।   


संकष्टी चतुर्थी का महत्व 

संकष्टी चतुर्थी का अर्थ संकटों का हरण करने वाली चतुर्थी होता है। इस पर्व को करने से गणेश जी प्रसन्न होकर हमारे सभी संकट दूर करते हैं और संतान को दीर्घायु का आशीर्वाद देते हैं। यह भी मान्यता है कि इस दिन पौराणिक काल में भगवान शिव ने गणेश जी को हाथी का सिर लगाकर उनके संकट दूर किए थे तब से इस दिन को संकष्टी चतुर्थी के रूप में पूजा जाता है। इस दिन व्रत में भी भगवान गणेश जी की पूजा के बाद उपवास रखा जाता है और कथा सुनाई जाती है। 

 

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