जया एकादशी पर जानें पूजन का शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और व्रत पारण का समय

 जया एकादशी पर जानें पूजन का शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और व्रत पारण का समय

जया एकादशी की प्रारंभिक जानकारी 

हमारे सनातन धर्म में मान्यता है कि आत्मा पुर्नजन्म लेती है। पुर्नजन्म में आप किस योनि में जन्म लेंगे यह आपके कर्म से निर्धारित होता है अच्छे कर्म करने वाले मोक्ष को भी प्राप्त हो सकते हैं तो बुरे कर्म करने वाले पिशाच योनि में जन्म ले सकते हैं मान्यता है एकादशी तिथि के दिन निस्वार्थ भाव से पूजा अर्चना करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद पिशाच योनि से मुक्ति मिल जाती है और सारे पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं। 

उन्हीं एकादशियों में से एक महत्वपूर्ण एकादशी है जया एकादशी तिथि। माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को अर्थात 11वीं तिथि को जया एकादशी कहा जाता है। जया एकादशी को दक्षिण भारत के कुछ समुदायों में विशेष रूप से कर्नाटक और आंध्रप्रदेश राज्यों में भूमि एकादशी और भीष्म एकादशी के रूप में भी जाना जाता है।हमारे शास्त्रों में एकादशी तिथि पर व्रत रखने का विधान बताया गया है। इसके अलावा आप अपना साप्ताहिक राशिफल इन हिंदी को फॉलो कर सकते है।  

वैसे तो हमारे शास्त्रों में सभी 24 एकादशियों को अमोघ फल देने वाला बताया गया है, परन्तु जब अधिक मास या मलमास होता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। शास्त्रों के अनुसार जया एकादशी को दुख,दरिद्रता और कष्ट मुक्ति के लिए विशेष रूप से प्रभावी माना गया है। इस बार 1 फरवरी को इस तिथि पर चार ऐसे योग बन रहे हैं। 1 फरवरी को ग्रह, नक्षत्रों से इंद्र और अमृत योग रहेंगे गुरु ग्रह की बात करें तो गुरु के मीन राशि में होने से हंस नामक महापुरुष योग बनेगा वही तिथि, वार और नक्षत्र से सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। 

यह चारों ही योग जया एकादशी के व्रत का पुण्य बढ़ा रहे हैं। इस दिन दान पुण्य से कभी ना खत्म होने वाला पुण्य मिलेगा। ऐसी मान्यता है इस दिन व्रत रखने वालों को नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन पूरे विधि-विधान से भगवान नारायण की आराधना करनी चाहिए। इस व्रत में केवल फलाहार करने और अन्न त्याग करने का विधान है।

जया एकादशी से जुड़ी महत्वपूर्ण कथा 

हमारे पुराणों के अनुसार यह कथा पिशाच योनि और भगवान इंद्र के श्राप से जुड़ी हुई है। एक समय की बात है नंदन वन में उत्सव का आयोजन हो रहा था सभी देवता,ऋषि -मुनि उस उत्सव का आनंद ले रहे थे। उस समय गंधर्व गा रहे थे तथा गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थी इन्हीं गंधर्व में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बहुत ही सुरीला गाता था जितनी सुरीली उसकी आवाज थी उतना ही रूपवान भी था। गंधर्व कन्याओं में एक पुष्यवती नाम की नृत्यांगना भी थी। पुष्पवती माल्यवान को देखते ही उस पर मंत्रमुग्ध हो गई तथा अपने हाव-भाव से उसे रिझाने का प्रयास करने लगी माल्यवान भी उस पुष्पवती पर आसक्त होकर अपने गायन का सुर ताल भूल गया। इससे संगीत की लय टूट गई और संगीत का सारा आनंद बिगड़ गया।

सभा में उपस्थित देवगणों को यह अच्छा नहीं लगा माल्यवान के इस कृत्य से इंद्र भगवान नाराज होकर उन्हें श्राप देते हैं। कि तुम दोनों स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगो क्योंकि तुमने संगीत जैसी पवित्र साधना का तो अपमान किया ही है साथ ही सभा में उपस्थित गुरुजनों का भी अपमान किया है। इंद्र के श्राप के प्रभाव से दोनों पृथ्वी पर हिमालय पर्वत के जंगल में पिशाची जीवन व्यतीत करने लगे।

पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था दोनों ही बहुत दुखी थे। एक बार माघ मास के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी के दिन संयोगवश दोनों ने कुछ भी भोजन नहीं किया और ना ही कोई पाप कर्म किया। उस दिन मात्र फल फूल खाकर ही पूरा दिन व्यतीत किया। भूख से तड़पकर तथा ठंड के कारण बड़े ही दुख के साथ पीपल के वृक्ष के नीचे इन दोनों ने एक दूसरे से सटकर बड़ी कठिनता पूर्वक पूरी रात काटी। पूरी रात अपने द्वारा किए गए कृत्य पर पश्चाताप भी करते रहे और भविष्य में इस प्रकार की भूल ना करने का भी प्रण लिया था सुबह होते ही दोनों की मृत्यु हो गई। अनजाने में ही सही उन दोनों ने एकादशी का उपवास किया था भगवान नारायण के नाम का जागरण भी हो चुका था परिणाम स्वरूप प्रभु की कृपा से इनकी पिशाच योनि से मुक्ति हो गई और दुबारा अपनी अत्यंत सुंदर अप्सरा और गंधर्व की देह धारण करके  दोनों स्वर्ग लोक को चले गए।

देवराज इंद्र उन्हें स्वर्ग में देखकर आश्चर्यचकित हुए और पूछा कि वे श्राप से कैसे मुक्त हुए। तब उन्होंने बताया कि भगवान नारायण की उन पर कृपा हुई है। हमसे अनजाने में माघ शुक्ल एकादशी यानी जया एकादशी का उपवास हो गया जिसके प्रताप से भगवान नारायण ने हमें पिशाची जीवन से मुक्त किया। कुछ इस तरह से जया एकादशी का व्रत करने से भक्तों को पूर्व में किए गए पाप कर्मों से मुक्ति मिल जाती है।

 

जया एकादशी शुभ मुहूर्त 

जया एकादशी का शुभ मुहूर्त पंचांग के अनुसार माघ माह के शुक्ल पक्ष की जया एकादशी तिथि 31 जनवरी को सुबह 11:53 से आरंभ होकर 1 फरवरी को दोपहर 2:01 तक रहेगी क्योंकि उदया तिथि को देखते हुए जया एकादशी का व्रत 1 फरवरी 2023 को रखा जाएगा। इस व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है इसलिए 2 फरवरी को सुबह 6:00 बजे से 9:00 बजे तक व्रत का पारण किया जा सकता है। 
इसके साथ साथ आप अपना मंथली राशिफल डेली बेसिस पर चैक कर सकते है।    

 

जया एकादशी व्रत की पूजा विधि

जया एकादशी की तिथि पर ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान ध्यान से निवृत्त होकर हाथ में कुछ अक्षत और फूल लेकर व्रत का संकल्प करें। इसके बाद घर के मंदिर में पूजा अर्चना करें इसके बाद एक चौकी पर भगवान नारायण की मूर्ति या तस्वीर रखें फिर पंचामृत से अभिषेक करें और रोली अक्षत, फल,तुलसी के पत्ते अर्पित करें। इसके बाद  फूल और मिष्ठान अर्पित करें और घी के पांच दीपक जलाएं। दीपक जलाने के बाद एकादशी व्रत की कथा सुने और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। इसके बाद तुलसी की माला से बीज मंत्र का जाप करें फिर भगवान की आरती उतारे और दान पुण्य करें। एकादशी व्रत करने के बाद अगले दिन व्रत का पारण भी ज़रूर करें।


जया एकादशी के दिन करें यह उपाय

जया एकादशी व्रत वाले दिन सुबह स्नान करने के बाद घी का दीपक जलाकर भगवान नारायण का आहवान करें इससे भगवान नारायण शीघ्र प्रसन्न होते हैं और घर में कभी धन की कमी नहीं होती है।


• जया एकादशी के दिन भगवान नारायण के साथ माता लक्ष्मी जी की भी पूजा करनी चाहिए मान्यता है ऐसा करने से जीवन में समृद्धि आती है।    
• जया एकादशी के दिन पालनहार श्री नारायण को प्रसन्न करने के लिए उन्हें पीले वस्त्र,पीले फूल, पीले रंग की माला ,मिठाई फल आदि अर्पित करें फिर बाद में गाय को चारा खिलाएं और जरूरतमंद को कुछ दान अवश्य करें।
• कहा जाता है पीपल में भगवान नारायण का वास होता है इसलिए इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा जरूर करनी चाहिए जया एकादशी के दिन किसी मंदिर में स्थित पीपल के वृक्ष को जल चढ़ाएं और उसके समीप घी का दीपक अवश्य जलाएं।
•  एकादशी के दिन तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। इस दिन केवल एक बार भोजन करें और वह भी फलाहार ही होना चाहिए साथ ही इस दिन चावल खाने से बचना चाहिए। एकादशी की सही तिथि जान ने के लिए आप सीधे टॉक टू एस्ट्रोलॉजर ऑनलाइन के विकल्प को चुने।   

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