आपकी कुंडली को कैसे प्रभावित करती है मंगल-शनि की युति

 आपकी कुंडली को कैसे प्रभावित करती है मंगल-शनि की युति

हर ग्रह की मानव जीवन में एक भूमिका होती है। जब कोई ग्रह कमजोर (Grah dosh) होता है तो व्यक्ति के जीवन में उससे संबंधित समस्या आ जाती है। कमजोर ग्रहों को मजबूत करके हम उस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं। कुंडली के पाप ग्रहों का युति एवं दृष्टि सम्बन्ध शुभ ग्रहों से होने पर ही जातक के जीवन में समस्या आतीं है। उपायों के द्वारा पाप ग्रहों के अशुभ प्रभाव को समाप्त कर के शुभ ग्रहों के बलाबल को बढ़ाकर औऱ जनम कुंडली इन हिंदी  से इन समस्याओं से जातक को राहत प्रदान की जाती है। 

मंगल और शनि आपस में शत्रु हैं और इनका एक ही भाव में साथ युति करना किसी भी जातक के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक ही होता है। मंगल औऱ शनि यह युति जीवन में बहुत ही नकारात्मक प्रभाव लेकर आती है। जिस कुंडली में शनि और मंगल की युति होती है वहां करियर और बिजनेस को सैट होने में दिक्कतें आती हैं।

मंगल और शनि - दोनों ही एक दूसरे के घोर विरोधी है। शनि कार्य करने में दक्ष है और मंगल को तकनीक में महारथ हासिल है। शनि का रंग काला है तो मंगल का रंग लाल है।

शनि के पास बहुत धैर्य है परंतु मंगल धैर्य हींन है शनि दास है तो मंगल सेनापति है। तभी सेनापति दास के घर मे उच्च का होता है और दास सेनापति के घर मे नीच का। क्योकि सेनापति की दास के घर मे बहुत सेवा होती है इसलिए सेनापति खुश रहता है और दास को सेनापति के घर मे बहुत कार्य करना परता है इसलिए दास सेना पति के घर मे दुखी रहता है।

शनि जमा हुआ ठंडा पदार्थ हैं, तो मंगल गर्म तीखा पदार्थ है, दोनो को मिलाने पर शनि अपने रूप में नही रह पाता है जितना तेज मंगल के अन्दर होता है उतना ही शनि ढीला हो जाता है।  यह संबंध जातक विशेष को आत्महत्या तक करने पर मजबूर करता हैं।

शनि मंगल का संबंध सच मे ही एक विध्वंसक संबंध हैं। शनि मंगल युति वाला जातक जीवन भर अपने आप से ही लड़ता रहता है। क्योंकि शनि जातक को धैर्य देता है परंतु मंगल धैर्य हींन बनाता है, शनि जातक को स्थिरता देता  है परंतु मंगल जल्दबाज बनाता है जातक किसी कार्य की सुरुवात तो बहुत जोरशोर से करता है परंतु जल्द ही जातक उस कार्य के प्रति उदासीन हो जाता है।

शनि मंगल का योग करियर के लिए संघर्ष देने वाला होता है करियर की स्थिरता में बहुत समय लगता है और व्यक्ति को बहुत अधिक पुरुषार्थ करने पर ही करियर में सफलता मिलती है।

शनि मंगल का योग व्यक्ति को तकनीकी कार्यों जैसे इंजीनियरिंग आदि में प्रगति कराता है। यह योग कुंडली के शुभ भावों में होने पर व्यक्ति पुरुषार्थ से अपनी तकनीकी प्रतिभाओं के द्वारा सफलतापाता है। तो आज ही कारागार उपायों के लिए कंसल्ट करे  इयरली प्रिडिक्शन्स बाई डेट ऑफ़ बर्थ फ्री 

शनि मंगल का योग यदि कुंडली के छठे या आठवे भाव में हो तो स्वास्थ में कष्ट उत्पन्न करता है शनि मंगल का योग विशेष रूप से पाचनतंत्र की समस्या, जॉइंट्स पेन और एक्सीडेंट जैसी समस्याएं देता है। कुंडली में बलवान शनि सुखकारी तथा निर्बल या पीड़ित शनि कष्टकारक और दुखदायी होता है। इन विपरीत स्वभाव वाले ग्रहों का योग स्वभावतः भाव स्थिति संबंधी उथल-पुथल पैदा करता है।

शनि मंगल की युति में मंगल की पावर बढ़ जाती है क्यो की ज्योतिषशास्त्र में  मंगल को सेनापति और शनि को दास कहा गया है।

ज्योतिष ग्रंथों में इस योग का फल बुरा ही बताया गया है। कुछ आचार्यों ने इसे ‘द्वंद्व योग' की संज्ञा दी है। ‘द्वंद्व' का अर्थ है लड़ाई। यह योग लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में होने पर मंगल दोष को अधिक अमंगलकारी बनाता है जिसके फलस्वरूप जातक के जीवन में विवाह संबंधी कठिनाइयां आती हैं।

विवाह के रिश्ते टूटते हैं, विवाह देर से होता है, विवाहोत्तर जीवन अशांत रहता है, तथा विवाह विच्छेद तक की स्थिति पैदा हो जाती है। लग्न में शनि-मंगल के होने से जातक अहंकारी व शनकी हो जाता है। जिस कारण वह अपने जीवन में हमेशा ऊट-पटांग निर्णय लेकर अपने जीवन को बर्बाद कर लेता है। अगर आपके साथ भी ये समस्या है तो  एस्ट्रोलॉजी ऑनलाइन कंसल्टेशन आपके लिए एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है.

शनि और मंगल इन दोनों का आपसी संबंधी अच्छा नही होता। शनि एक पाप ग्रह है तो मंगल क्रूर ग्रह है जब यह दोनों आपस में युति दृष्टि आदि तरह से सम्बन्ध बनाते है तो इनकी क्रूरता और इनसे सम्बंधित क्रूर फलो में वृद्धि हो जाती है।

शनि मंगल के बीच तीन तरह से सम्बन्ध बनता है जब यह ग्रह किसी एक राशि/ भाव में साथ हो तो युति संबंध, जब आपस में एक दूसरे को अपनी पूर्ण दृष्टि से देख रहे हो तो दृष्टि सम्बन्ध, जब यह दोनी एक दूसरे की राशि में बैठे हो यह राशि परिवर्तन सम्बन्ध कहलाता है।

इन तीनो में युति और दृष्टि सम्बन्ध सबसे ज्यादा क्रूर और अशुभ होता है क्योंकि युति होने से इन दोनों प्रभाव एक साथ दो भावो पर पडता है । एक जिस भाव में बैठे होते है वहाँ , दूसरा अपने से सातवें भाव पर एक साथ दृष्टि डाल रहे होते है वहाँ, इसी तरह से दृष्टि सम्बन्ध होने पर भी बिलकुल यही प्रभाव होता है।

जब यह दोनों राशि परिवर्तन संबंध बनाते है तब इस स्थिति से बनने वाला सम्बन्ध ज्यादा अशुभ नही होता। यदि शनि मंगल 3, 6, 11, भाव में बैठकर राशि परिवर्तन करे तो कुछ अच्छा फल भी कर देते है।

अन्य तरह से इनका सम्बन्ध ठीक नही होता। जिस भी भाव पर सम्बन्ध बनाकर यह दोनों एक साथ प्रभाव डालेंगे उस भाव के फल को नष्ट कर देते है।

यदि भावेश बली हो या भाव शुभ ग्रहो से या अपने भावेश से दृष्ट या युक्त हो तब उस भाव संबंधी फल में दिक्कत करते है। यह निश्चित होता है कि यदि शनि मंगल का युति दृष्टि सम्बन्ध होता है तो जीवन में यह संघर्ष जरूर कराते है।

शनि-मंगल दोषमुक्ति के लिए उपाय

यदि कुंडली के किसी भी भाव में शनि मंगल एक साथ हों तो सबसे पहले ये देखना चाहिए कि दोनों में से शुभ कौन है तथा अशुभ कौन। इसे सरल बनाने के लिए ऐसे पता करें। यदि शनि अपनी मित्र राशियों- वृषभ, मिथुन, कन्या में हो या अपनी स्वः राशी कुम्भ में हो या अपनी उच्च राशि तुला में हो तब शनि शुभ होगा तथा मंगल अशुभ। इस स्थिति में मंगल के उपाय करने चाहियें।

इसी प्रकार यदि मंगल अपनी मित्र राशियों- सिंह, धनु, मीन में हो या अपनी स्वः राशियों मेष ध्वृश्चिक में हो तब यहां शनि के उपाय करने चाहिए और दूसरी और  मकर शनि की स्वः राशि है तथा मंगल की उच्च राशी और अगर मकर राशि मे दोनो की युति हो तब रोज हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए, पीपल के पेड़ में जल देना चाहिए और शिव मंदिर में रोज शिवलिंग में जल से अभिषेक करना चाहिए।

कुंडली में शनि , मंगल व अन्य पाप ग्रहों से मिलने वाले अशुभ प्रभावों को निष्क्रिय करने में अभिमन्त्रित रुद्राक्ष कवच का कोई तोड़ नही है। पिछले 17 वर्षों के अनुभव व शोध में हमने विषम से विषम परिस्थितियों में जातकों को उनकी कुंडली के अनुसार तैयार कराए कवच से अभीष्ट लाभ पाते हुए देखा है। उपरोक्त उपाय सामान्य उपाय होते हैं जिनसे लाभ थोड़ा विलम्ब से मिलता है इसके विपरीत अभिमन्त्रित रुद्राक्ष त्वरित गति से लाभ देते हैं बशर्ते ये किसी योग्य विशेषज्ञ द्वारा प्राण प्रतिष्ठित व तांत्रोक्त मंत्रों द्धारा अभिमन्त्रित किये गए हों। 

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