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अक्षय तृतीया की प्रारंभिक जानकारी: हमारे देश में अलग-अलग प्रकार के धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं यहां के लोगों की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक विविधता देखने को मिलती है वैसा विश्व के अन्य देशों में कम ही पाया जाता है। यहां के त्योहारों में धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था की नींव बहुत गहरी हैं। इन्हीं त्योहारों में अक्षय तृतीया एक ऐसा पर्व है जिसको बहुत ही पवित्र माना जाता है। वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की शुरुआत के साथ ही कई पर्वों का भी आगमन हो रहा है। हर साल की तरह इस साल भी वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाएगा।
अक्षय तृतीया को विभिन्न नामों से भी जाना जाता है जैसे की आखा तीज और अक्षय तीज। अक्षय का अर्थ है जिसका कभी क्षय अर्थात हानि ना हो एवं जो कभी खत्म ना हो और तृतीया का अर्थ है तीसरा दिन जो प्रत्येक माह में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में नियमित आता है।
अक्षय तृतीया पर सोने की खरीदारी करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन सूर्य और चंद्र ग्रह दोनों ही अपनी उच्च राशि में स्थित होते हैं। मान्यता है ऐसे में हमें दोनों ग्रहों की मिश्रित कृपा का फल प्राप्त होता है। अक्षय तृतीया तिथि में बृहस्पति ग्रह का मेष राशि में प्रवेश शुभ संयोग का निर्माण कर रहा है। इस दिन बड़ों के आशीर्वाद से सभी काम बिना रुकावट के पूर्ण हो जाते हैं। यहां तक की ऐसी मान्यता है कि इस दिन बिना पंचांग देखें कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, वस्त्र आभूषणों की खरीदारी, वाहन आदि की खरीदारी से जुड़े हुए कार्य किए जा सकते हैं।
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अक्षय तृतीया पूजा और स्वर्ण खरीदारी का शुभ मुहूर्त
वैशाख के महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 22 अप्रैल 2023 सुबह 07:49 बजे से शुरू होगी और 23 अप्रैल 2023 को सुबह 07:47 बजे समाप्त होगी। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07:49 से दोपहर 12:20 तक है। वहीं सोने की खरीददारी के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 07 बजकर 49 मिनट से शुरू होकर 23 अप्रैल को सुबह 05 बजकर 48 मिनट तक रहेगा।
अक्षय तृतीया पूजा विधि
अक्षय तृतीया के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें। एक चौकी पर नारायण और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। उनको पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराएं। इसके बाद चंदन और इत्र लगाएं। पुष्प, तुलसी, हल्दी या रोली लगे चावल, दीपक, धूप आदि अर्पित करें। संभव हो तो सत्यनारायण की कथा का पाठ करें या गीता पढ़ें। पंचामृत, पंजीरी और खीर आदि का भोग लगाएं। अंत में आरती करके अपनी भूल की क्षमा याचना करें। इसके बाद दान आदि शुभ काम करें।
अक्षय तृतीया की पौराणिक मान्यता
भारतीय मान्यताओं के अनुसार इस दिन विवाह आदि का समय शुभ माना जाता है और किसानों के लिए भी इसका एक अलग ही महत्व होता है। जैन धर्म में भी इस दिन की काफी मान्यता है अक्षय तृतीया के दिन ही जैन धर्म के प्रथम स्थापना करने वाले तीर्थ कर भगवान ऋषभदेव को 1 वर्ष की तपस्या के बाद गन्ने के रस से पारण कराया गया था। इन्हें वैदिक और बौद्ध ग्रंथों में भी महत्व दिया गया है।
अक्षय तृतीया के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
आइए जानते हैं अक्षय तृतीया के बारे में कुछ रोमांचक तथ्य जो आपको हैरान कर देंगे—
1. पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा भागीरथ ने मां गंगा को धरती पर लाने के लिए हजारों वर्ष तक कठोर तपस्या की और तपस्या के फलस्वरूप अक्षय तृतीया के दिन ही मां गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पिछले सात जन्मों के पाप भूल जाते हैं और व्यक्ति को सकारात्मक भाव की प्राप्ति होती है।
2. अक्षय तृतीया के दिन ही चार धाम में से एक धाम के पट खुलते हैं जोकि श्री बद्री नारायण जी का धाम है। साथ ही इसी दिन मथुरा में श्री हरि बिहारी जी के चरणों के दर्शन कराए जाते हैं। श्री हरि बिहारी जी के चरणों को साल भर वस्त्रों से ढका जाता है और अक्षय तृतीया के दिन उनके चरणों के दर्शन कराए जाते हैं ऐसी मान्यता भी है कि जो श्री हरि बिहारी जी के चरणों का दर्शन कर ले उन्हें स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त होता है।
3. पुराणों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग, त्रेता युग और कलयुग का आरंभ हुआ था और द्वापर युग की समाप्ति भी इसी दिन हुई थी।
4. इसी दिन अन्न की दाता मानी जाने वाली माता श्री अन्नपूर्णा जी का जन्म भी हुआ था ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो भी धन-अन्न का दान करता है उसके भंडार कभी खाली नहीं होते।
5. यह बात चौका देने वाली है परंतु यह सत्य है कि इसी दिन महार्षि वेदव्यास ने महाभारत लिखना शुरू किया था। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो गीता के 9 वे अध्याय का पाठ करें वह जीवन में कभी भी निराशा और दुख का भोगी नहीं बनता।
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अक्षय तृतीय व्रत कथा
एक समय की बात है शाकलनगर में एक धर्मदास नामक वैश्य रहता था। वह धार्मिक विचारों वाला व्यक्ति था। वह दान-पुण्य का काम बड़ी श्रद्धा पूर्वक करता था। भगवान के प्रति उसकी असीम आस्था थी। वह हमेशा ब्राह्मणों का आदर सत्कार किया करता था। एक दिन की बात है वैश्य धर्म दास को किसी दूसरे के माध्यम से अक्षय तृतीया के महत्व का पता चला। उस व्यक्ति ने धर्मदास को बताया, कि अक्षय तृतीया के दिन पूजा-पाठ और ब्राह्मणों को दान कराने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती हैं। यह बात वैश्य धर्मदास के मन में बैठ गई।
जब अक्षय तृतीया की तिथि आई, तो उसने उस दिन सुबह-सुबह स्नान करके पितरों और देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करके ब्राह्मणों को आदर सम्मान पूर्वक भोजन कराया। इस प्रकार से वैश्य धर्मदास हर साल अक्षय तृतीया के दिन पूजा-पाठ करने लगा। उसका ऐसा करना उसके घरवालों को ठीक नहीं लगता था। उसकी पत्नी हमेशा उसे ऐसा करने से रोका करती थी। लेकिन धर्मदास दान-पूर्ण करना कभी नहीं छोड़ा।
कुछ समय बाद धर्मदास का निधन हो गया। अगले जन्म में वह द्वारका के कुशावती नगर में पैदा हुआ। बड़ा होकर वह उस नगर का राजा बन गया। ऐसी मान्यता है यह सब अक्षय तृतीया के पूजा-पाठ का ही फल था। अगले जन्म में भी वह धार्मिक विचारों वाला व्यक्ति ही था।
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